सपने मैं देखती नहीं, हकीकत पर जिंदा हूँ,
सपने मैं दिखाती नहीं, क्यूंकि उनका टूटना महसूस करती हूँ.
अनजान रास्तों पर चलती नहीं, खो जान इसे मैं डरती हूँ,
अनजान रास्तों को चुनने से दूसरों को मैं रोकती हूँ.
खुद को दूर रखती हूँ,महफिल में अकेली रहती हूँ,
कोई दोस्त बनके भुला ना दे इस बात से मैं डरती हूँ.
बगीचे से फूलों को मैं चुनती हूँ, उनके पल में murjhane के दर से, उन्हें सिर्फ निहारती हूँ.
दोस्तों की तृष्णा मिटाती हूँ, तृष्णा मिट ते ही चले जायेंगे,इस बात पर खुद से खफा रहती हूँ.
Saturday, February 21, 2009
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