ना था ठिकाना ख़ुशी का जब, इश्वर ने कहा जा रहा है धरती पर तू वत्स.
बस नौ महीने का इंतज़ार, और घूमेगा तू धरती पर आज़ाद.
सुना है धरती है सुंदर बहुत, जहाँ पर इंसान बन आना चाहते हैं eeshwar समस्त.
इंतज़ार मेरा ख़तम हुआ, पाय अखुद को माँ की कोख में.
नौ महीनो का इंतज़ार सहा नहीं जाता धरती पर आने से.
दिखाई ना देती हो भले ही, पर कोशिश करता था सुनने की, क्या बात करते होंगे लोग, कैसी होगी दुनिया बहार की?
सुनी थी मैंने आवाज़ ख़ुशी की, तैयारियां मेरे स्वागत में मेरे माँ की.
सुनी थी मैंने आवाज़ मंदिरून की घंटियों की, सुनी थी आवाज़ माँ के प्रार्थना की.
खोया था सपनो में की होगा मेरा जन्म, कुछ ही दिनों में खेलूँगा मैं अपने माँ के आँगन.
हे भगवान्! कैसी थी ये आवाज़? कैसा था ये धमाका?कौन है वो? जो रो रहे हैं? छाया है क्यूँ हर तरफ शोर शराबा?
मैंने सुना माँ को यह कहते-" क्या बिगारा था इनका किसीने"?
बात मेरे समझ ना आई, क्यूँ कर रही थी माँ किसी की बुरे?
पता चला बातों से, किया है इंसान ने इंसानों की हत्या. बहाया है खून जीवित मानव का,
चीन लिए है प्राण कितने ही शिसुऊँ का.
रो पड़ा मैं यह सब देख, करनी थी भगवान् से शिकायत.
किया कौन सा पाप मैंने? जो भेजा मुझे इस दुनिया में?सूचा था सुंदर होगी यह दुनिया,
पर बह रहा है खून का दरिया.
नहीं जाना मुझे इस धरती पर, करता है जहाँ इंसान इर्ष्या द्वेष एक दुसरे पर.
बटे हैं जहाँ इंसान लकीरों से.
आज़ादी ना हो जहाँ जी भर घूमने की, डरा हुआ है जहाँ इंसान धमाके से मौत की.
मर जाते हो जहाँ छोटे बच्चे पैदा होते ही, बचते हैं जो बन जाते हैं वो अनाथ भी.
नहीं जाना उस दुनिया में, हर पल हो मौत का डर जहाँ पे, प्यासा है इंसान ही इंसान के खून के.
I was so carried away with the Mombai blast at the taj i wrote this poem.